सोमवार, 16 अप्रैल 2012

Matar mushroom recipe in Hindi

मटर - मशरूम बनाने के लिए सामग्री(2 से 4 व्यक्तियों के लिए )
220 ग्राम मशरूम कटे हुए, 200 ग्राम हरी मटर के दाने, 2 टमाटर कटे हुए, 2 प्याज बारीक कटी हुई, 1 छोटा चम्मच अदरक का पेस्ट, 4 कली लहसुन की पिसी हुई, आधा छोटा चम्मच पिसा हुआ धनिया, एक चौथाई चम्मच हल्दी, आधा छोटा चम्मच गरम मसाला, आधा छोटा चम्मच लाल मिर्च, तेल, नमक स्वाद के अनुसार|

मटर - मशरूम की विधि
सबसे पहले एक सॉस पैन में दो बड़े चम्मच तेल के डाले|
तेल गरम करके इसमें मशरूम डालें और दो मिनट तक फ्राई कर के निकाल लें|
इसके बाद इसी सॉस पैन में एक बड़ा चम्मच और डालकर गरम करे| फिर इस गर्म तेल में लहसुन, प्याज व अदरक डालकर मिश्रण को सुनहरा होने तक फ्राई करें|
अब इसमें टमाटर व सभी मसालें डालकर टमाटर नरम पड़ने तक फ्राई करें|
अब इसमें फ्राइड किये हुए मशरूम और मटर डालकर दो मिनट तक चलाएं| फिर इसमें आधा कप पानी डालकर ढक दें| धीमी आंच पर 4 से 6 मिनट या मटर गलने तक पकाएं| इसके बाद इसे उतार लें|
अब आपका स्वादिष्ट मटर - मशरूम तैयार है| इसे लंच या डिनर के समय नान य परांठो के साथ गरम गरम खाएं और खिलाएं|
प्रकाशन तिथि: 01 अगस्त, 2011  

What are Mushrooms?

Mushrooms are unique. They are neither animal or plant.
Some people consider them plants for various reasons, but they differ from plants in that they lack the green chlorophyll that plants use to manufacture their own food and energy. For this reason they are placed in a Kingdom of their own," The Kingdom of Fungi".

Mushrooms are also unique within the Fungal Kingdom itself, because they produce the complex fruiting body which we all know as 'The Mushroom', all of the mushrooms are placed in a division called 'Eumycota' meaning 'The True Fungi'.
The True Fungi are what we all know as mushrooms. They are divided into other groups depending on the structure of their fruiting bodies and various other macro and microscopic characteristics.

The two major groups of Eumycota are Basidiomycetes and Ascomycetes.
A brief description of each is provided on their individual pages, and for an overview of how the division Eumycota is broken down see the Classification page.

So, what are mushrooms? A mushroom is but the fruit of the fungal organism that produces them, just like an apple tree produces apples to bear seeds to ensure the continuation of it's species, so the fungal organism produces mushrooms that carry spores to ensure the continuation of it's own species.
Therefore, the mushroom is the reproductive organ for the fungus.
This means that by picking a mushroom we do not harm the fungus itself, because the main body of the organism lies underground in the form of a network of minute threads called 'Hyphae'.
When two compatible hyphae meet they join together to form another network called the 'Mycelium' which grows quietly and unseen under ground for most of the year until the conditions are right for fruiting and that's when we get to see mushrooms.

Unfortunately, mushrooms are very delicate things, they do not last, some have a life span of less than a day others may survive one week, and a group of tougher mushrooms may last months but they have a tough woody texture.
Most fleshy mushrooms do not last, and this makes researching them very difficult.
Since we do not know where they are till they fruit, we only get a few days to study them each time, and this is seasonal.
You may ask why we don't mark the spot they fruited so they can be studied more next time? Good idea, but mushrooms are funny things, you may see a mushroom on a patch of your front lawn this year, but it may not fruit again for several years, or it may fruit again next week, or you may find a completely different kind of mushroom in the same area.

Each Mushroom carries within it millions or even billions of spores, to the extent, that in the case of some kinds of mushrooms grown commercially, workers have to wear dust masks to protect themselves from the spore dust and breath easily.
Only a few of these spores manage to survive and grow into a mycelial network producing new mushrooms . To make life even more difficult, two compatible spores have to meet to be able to produce mushrooms.

आलू-मशरूम की इंग्लिश सब्जी

 आलू-मशरूम की इंग्लिश सब्जी
 शेफ विश्वजीत रॉय

 सामग्री :
250 ग्राम छोटे आलू, 100 ग्राम बेबी कॉर्न, मशरूम 100 ग्राम, 1ग्राम जीरा, 2 तेज पत्ता, 3-3 छोटी इलायची व पिसी लौंग, 100 ग्राम प्याज, हरी मिर्च पेस्ट 2 चम्मच, अदरक-लहसुन पेस्ट 1 टी स्पून, हल्दी, गरम मसाला 5 ग्राम, धनिया पावडर 5 ग्राम, टोमॅटो ग्रेवी 3 चम्मच, अमचूर पावडर 1 चम्मच, नमक-मिर्च स्वादानुसार।

विधि :
सबसे पहले आलू, बेबी कॉर्न और मशरूम को अलग-अलग बर्तन में उबाल लें। इस दौरान ध्यान रखें कि यह गलने न पाएँ। अब इसके छिलके निकालकर एक साफ बर्तन में रख दें। एक कड़ाही में 2 चम्मच तेल गर्म करके जीरा, तेजपत्ता, छोटी इलायची, लौंग और प्याज का तड़का लगाएँ। जब यह हल्का भूरा रंग हो जाए तो चौंप मसाला डालें।

इसके बाद अदरक व हरी मिर्च पेस्ट, धनिया, हल्दी व गरम मसाले को बारी-बारी से डालें। अच्छी तरह भूनने पर आलू, मशरूम और बेबी कॉर्न डालें। अब नमक और पानी डालकर मिक्स कर लें। आलू, मशरूम बेबी कॉर्न की सब्जी तैयार है। रोटी और चावल के साथ गरम सर्व करें।

कृषि कार्य माना होता तो जिंदा रहती मशरूम

रविंद्र पंवर, सोलन
'मशरूम सिटी ऑफ इंडिया' के नाम से मशहूर सोलन में मशरूम उत्पादन दम तोड़ने लगा है। देश को मशरूम से बने शाही पकवानों की सौगात देने वाले सोलन में इसकी पैदावार कम हो रही है। दुख यह कि 'खुंब नगरी' के तमगे को सहेजने में राज्य सरकारें असफल रही हैं। अब नगरी तो है लेकिन खुंब गायब हो रही है।
क्या है कारण
हिमाचल प्रदेश में मशरूम उत्पादन को कृषि कार्य घोषित न करने और इसके लिए विभागीय अनुदान सहित विपणन व्यवस्था न होने से मांग व उत्पादन में भारी अंतर आया है। इसका परिणाम है कि पहले सोलन के घर-घर में मशरूम की खेती होती थी, अब लोग हाथ खींचने लगे हैं। वर्तमान में हरियाणा अधिक उत्पादन के कारण मशरूम राज्य बनने की ओर अग्रसर है, वहां इसे कृषि कार्य घोषित किया गया है। इसके अलावा पंजाब, उत्तर प्रदेश व जम्मू-कश्मीर सहित कई राज्यों में मशरूम उत्पादन को कृषि का दर्जा प्राप्त है।
महाराजा पटियाला विदेश से लाए थे स्पॉन
सबसे पहले महाराजा पटियाला मशरूम स्पॉन (खुंब का बीज) विदेश से यहां लाए थे। उन्होंने चायल के समीप दोची स्थित अपने फार्म हाउस में मशरूम उगाना शुरू किया और बाद में इसकी सप्लाई भी की जाने लगी। इसके बाद 60 के दशक में सोलन से मशरूम को पहचान मिली और इससे बने व्यंजन गरीब की रसोई से लेकर बड़ी दावतों तक की शान बने। उस समय यहां पर एग्रीकल्चर कॉलेज में मशरूम उत्पादन की जानकारी दी जाती थी।
1997 में बनी 'मशरूम सिटी ऑफ इंडिया'
मशरूम उत्पादन के लिए सोलन का मौसम अनुकूल होने, साल में कई फसलें निकलने और इससे मिलने वाले तगड़े मुनाफे के कारण इसके प्रति लोगों का रुझान बढ़ा। एक समय वह भी आया जब सोलन के घर-घर में मशरूम उत्पादन शुरू हो गया। बाद में यहां पर मशरूम के राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई, जिसे अब निदेशालय बना दिया गया है। सोलन में मशरूम पर हो रहे अनुसंधान व पैदावार के चलते 10 सितंबर 1997 को सोलन को 'मशरूम सिटी ऑफ इंडिया' का दर्जा मिला।
कृषि कार्य नहीं माना
1997 में केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के विभागीय मुख्य सचिवों को मशरूम उत्पादन को कृषि कार्य की मान्यता देने के लिए पत्र लिखे थे। इस पर केवल तीन-चार राज्यों ने ही इसे कृषि कार्य के रूप में अपनाया, जबकि हिमाचल में इसे आज भी उद्योग के रूप में देखा जाता है। यहां पर किसान छोटे स्तर पर ही मशरूम उत्पादन करते हैं, जिससे वह विभागीय अनुदान व अन्य सुविधाओं से भी वंचित हैं। मशरूम प्लांट के लिए बिजली मीटर भी व्यावसायिक दर पर लगते हैं और उत्पादकों को महंगे दामों पर बीज व उपकरण खरीदने पड़ते हैं। विपणन की भी व्यवस्था नहीं है और उत्पादकों को तैयार माल बेचने का खुद इंतजाम करना पड़ता है।
उत्पादन कम मांग ज्यादा
मौजूदा समय में सोलन में प्रतिदिन लगभग चार क्विंटल मशरूम उत्पादन हो रहा है, जबकि मांग आठ क्विंटल से भी ज्यादा है। ऐसे में डिमांड पूरी करने के लिए यहां के बड़े उत्पादक बाहरी क्षेत्रों से मशरूम खरीद कर आगे सप्लाई कर रहे हैं, जबकि पहले यही उत्पादन आठ से दस क्विंटल होता था। इस व्यवसाय से जुड़े करीब सौ उत्पादकों की मांग है कि मशरूम निदेशालय सहित नौणी यूनिवर्सिटी और उद्यानिकी विभाग समय पर उन्हें बढि़या बीज उपलब्ध करवाए व खाद भी पर्याप्त मिले।
लागत व मुनाफे में फंसे उत्पादक
घटते रुझान का सबसे बड़ा कारण है कि उत्पादक अब लागत व मुनाफे में फंस गए हैं। पहले-पहले बढि़या बीज मिलता था और खाद सस्ती थी, जिससे 50 रुपये प्रतिकिलो तक के दाम में उत्पादकों को मुनाफा होता था। अब जबकि मशरूम के दाम 80-90 रुपये प्रतिकिलो हो गए हैं फिर भी महंगी खाद, घटिया बीज और अनुदान की कमी से उत्पादकों को घाटा हो रहा है। इससे औसत उत्पादन भी घट गया है और प्रति बैग लगभग तीन किलो उत्पादन घटकर डेढ़-पौने दो किलो रह गया है। यहां केवल दो-तीन उत्पादकों के पास ही मशरूम के एसी प्लांट हैं, जबकि बाकी लोग मौसम के हिसाब से फसल लेते हैं।
डीएमआर सफेद हाथी, उद्यानिकी विभाग में फंड नहीं
सोलन स्थित मशरूम अनुसंधान निदेशालय (डीएमआर) अब सफेद हाथी बनता जा रहा है और यहां के उद्यानिकी विभाग के पास फंड नहीं, जिससे उत्पादकों को फायदा हो। सोलन में बटन मशरूम ही अधिक पैदा हो रही है, जबकि एक फीसदी लोग डिंगरी मशरूम लगा रहे हैं। इसके अलावा डीएमआर ने ऋषि व मिल्की मशरूम की प्रजातियां तैयार की थी, जिसका यहां उत्पादन ही नहीं हो रहा। मशरूम की मुख्य बीमारी गीला बुलबुला का भी निदेशालय के पास कोई तोड़ नहीं, जिससे उत्पादकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। यही नहीं यहां के उद्यानिकी विभाग को सरकार की ओर से फंड नहीं मिल पाते, जिससे वह किसानों की सहायता में असमर्थ है। विभाग में बरसों पुराना खाद सयंत्र है, जिसे बदलने व अन्य कार्यो के लिए ऊपर से पैसा नहीं मिल रहा।
छोटे स्तर पर अनुदान का प्रावधान नहीं : धीमान
मशरूम विकास अधिकारी एमएल धीमान ने कहा कि मशरूम उत्पादन को कृषि कार्य घोषित करना सरकार पर निर्भर करता है। सोलन में किसान इस कार्य को छोटे-छोटे स्तर पर कर रहे हैं, जिन्हें अनुदान का प्रावधान नहीं। दूसरी तरफ जिन लोगों ने उद्योग की तर्ज पर मशरूम प्लांट लगाए हैं, उन्हें उद्योगों के फायदे मिल रहे हैं।

खुम्ब में बनाएं शानदार भविष्य

मशरूम की खेती से होने वाले लाभ से उत्साहित होकर अब हर किसान व आम व्यक्ति इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। मशरूम अब कैरियर से जुडा सेक्टर माना जाने लगा है। इसका सामान्य प्रशिक्षण लेकर काफी पैसा कमाया जा सकता है।
भारत में मशरूम का व्यावसायिक उत्पादन बहुत तेजी से लोकप्रिय होता जा रहा है। मशरूम एक प्रकार का फंगस (कवक) है। इसे खुम्ब के नाम से भी जाना जाता है। यह एक बहुत ही स्वादिष्ट और पौष्टिक खाद्य पदार्थ है, लेकिन हर खुम्ब खाने योग्य नहीं होती और कुछ बहुत ही विषैली होती हैं। विश्व में दो हजार से ज्यादा किस्मों की मशरू म पाई जाती है, लेकिन इसमें करीब 25॰ प्रकार की मशरूम खाने योग्य होती है। अब तक सौ से ज्यादा मशरूम की प्रजातियों को खाद्य पदार्थ के रूप में अपनाया जा चुका है और इनमें से लगभग 35 की व्यावसायिक खेती दुनियाभर में की जा रही है। मुख्यरूप से उगाई जाने वाली मशरूम में सफेद बटन खुम्ब, शिटाके, ढोंगरी, ब्लैक ईयर मशरूम, धान पुआल खुम्ब और दूधिया मशरूम शामिल हैं। विश्व में हर साल लगभग 5॰ लाख टन खुम्ब का उत्पादन किया जाता है।

मशरूम पर शोध
दिल्ली के आसपास जैसे जीटी करनाल रोड के निकट अलीपुर ब्लॉक के कुछ गांवों में तो बडे पैमाने पर मशरूम की खेती की जा रही है। मशरूम की खेती न्यूनतम दो हजार रुपए से शुरू की जा सकती है। इसकी खेती की अपार संभावनाओं को देखते हुए सोलन स्थित नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर मशरूम विदेश में उगाई जाने वाली मशरू म पर काफ ी शोध कर रहा है, जिसमें संस्थान को विभिन्न प्रजातियां उगाने में सफलता भी हासिल हुई है।
मशरूम का उत्पादन
इसकी सबसे खास बात यह है कि उत्पादन बेकार बचे कृषि अवशेषों पर किया जाता है। इसकी खेती के लिए उपजाऊ भूमि और खेत और सूरज के प्रकाश की जरू रत नहीं पडती, इसलिए बंजर भूमि का उपयोग कर बेकार पडी खाली जमीन पर मशरूम की खेती कर लाभ कमाया जा सकता है। मशरूम की खेती मशरूम हाउस या हाट बनाकर भी की जा सकती है।
मशरूम की प्रजातियां
मशरूम की कुछ प्रजातियां तो महज पंद्रह से बीस दिनों में ही उगनी शुरू हो जाती हैं, जबकि कुछ प्रजातियों को उगने में ढाई महीने तक का समय लग जाता है। खुम्ब की खेती छोटे किसानों, बेरोजगारों और गृहणियों के लिए अजीविका का सबसे सशक्त साधन है। इसके उत्पादन के बाद बची कंपोस्ट का एक अति उत्तम ऑर्गेनिक खाद के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है और सबसे बडी बात मशरूम उत्पादकों के लिए निर्यात से लाभ कमाने की अपार संभावना है।
खेती भी आसान
उत्तर भारत के मैदानी भागों में सर्दी के महीनों में बटन खुम्ब और गर्मियों में धान पुआल खुम्ब की खेती आसानी से की जा सकती है। हमारे देश के उत्तरी भाग में सफेद बटन मशरूम सबसे अधिक उगाई जाने वाली मशरूम है। देश में हर साल लगभग 36 से 38 हजार टन सफेद बटन मशरूम का उत्पादन किया जाता है। इसकी मुख्य रूप से दो प्रजातियां-1. एगेरिकस बाइस्पोरस और 2. एगेरिकस बाइटोरक्विस हैं। इसकी खेती करने के लिए सबसे उपयुक्त माध्यम गेहूं अथवा धान का भूसा है, जिसकी उर्वरकता बढाने के लिए गन्ने का शीरा, घोडे की लीद, पॉल्ट्री मैन्योर, गेहूं की भूसी और विभिन्न रासायनिक खादें मिलाई जाती हैं। इन सब चीजों को मिलाकर भूसे को सडाया जाता है और उसकी कंपोस्ट बनाई जाती है। इसी कंपोस्ट से बटन मशरूम की खेती की जाती है।
यह खराब नहीं होता
सफेद बटन मशरूम की खेती दो प्रकार से की जाती है। पहला सीजनल और दूसरा नियंत्रित वातावरण में। सीजनल खेती के लिए उत्तरी भारत के मैदानी भाग में इसे उगाने का मौसम अक्टूबर से मार्च मध्य तक है। बटन मशरूम का उत्पादन वातावरण से बहुत प्रभावित होता है। इसके कवक जाल फैलने के लिए 22 से 26 सेंटीग्रेट तापमान पर इसके फलनकाय जल्द और ठोस बनते हैं। इससे कम तामपान पर इसकी बढने की क्षमता धीमी पड जाती है। बटन मशरूम की भंडारण अवधि बहुत कम होती है, इसलिए फसल के मौसम में ही इसका डिब्बाबंद संरक्षण कर लिया जाता है जिसे एक साल तक उपयोग में लाया जा सकता है।
खेती करें, धन कमाएं ज्यादा
नियंत्रित वातावरण में बटन मशरूम की खेती सालभर की जा सकती है। इस दौरान मशरूम की चार से पांच फसल आसानी से ली जा सकती है। मशरूम की सीजनल खेती में लागत कम होने की वजह से यह हमारे देश में अधिक लोकप्रिय है।

खेती बिना खेत के, आमदनी जेब भरके

घर में उत्पादन
-कृषि विश्वविद्यालय से प्रशिक्षण पाकर सफल हो रहे किसान
- बीज उत्पादन के गुर सिखाने से लेकर मदर कल्चर मिल रहा मुफ्त
- विश्वविद्यालय व कृषि विज्ञान केन्द्र से किसान उठा सकते बीज
अमरेन्द्र तिवारी,मुजफ्फरपुर : 'खेती बिना खेत के..' सुनकर आपको भले आश्चर्य लगे, लेकिन बात है सौ फीसदी सही। राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा की पहल पर बिना खेत वाले लोग भी मशरूम की खेती कर अपनी जेबें भर रहे हैं। विश्वविद्यालय की पहल पर विश्वविद्यालय के परिसर से सटे पोखरैरा की रेहाना खातून तो इसका रोल मॉडल बन गई है। पति की मजदूरी से परिवार चलानेवाली रेहाना खुद अपनी मेहनत से एक छोटी सी झोपड़ी के अंदर मशरूम की खेती कर हर माह 15 सौ से दो हजार रुपये तक की आमदनी कर रही है। इनकी प्रेरणा से 20-25 महिलाएं अपने घर में मशरूम का उत्पादन कर रही हैं। इस गांव की सुलेखा राय, रीता देवी, अर्चना तिवारी व जरीना की मानें तो मशरूम की खेती गरीबों के लिए वरदान है। खाने के लिए सब्जी मिल जाती है वहीं इतनी मांग है कि घर से लोग खरीद कर ले जाते हैं।
कैसे हो रही लाभदायक
खेती करने वाली रेहाना बताती है कि दस किलो भूसा को उबालकर फिर उसे मोटरी बनाकर टांग देती है। सुबह में पांच बैग तैयार करती है। एक बैग में सौ ग्राम बीज डालकर पॉलीथीन में रखकर घर में टांग दिया जाता। 15 से 16 दिन में बाद फसल तैयार और एक बैग से 250 ग्राम से लेकर 300 ग्राम तक उत्पादन प्राप्त होता है। स्थानीय स्तर पर यह 150 रुपये से दो सौ रुपये किलो तक बिक जाता है। यह पौष्टिक होने के साथ-साथ इतना स्वादिष्ट होता है कि इसकी सब्जी, पकोड़ा आदि लोग खूब खाते हैं।
कब-कब करें खेती
कृषि वैज्ञानिक डा. दयाराम की मानें तो मशरूम सालों भर की खेती है। लेकिन, सितम्बर से मार्च तक बेहतर उत्पादन किया जा सकता है। 70 रुपये प्रति किलो की दर से बीज किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा है। बीज 15 से 20 दिन में तैयार हो जाता है।
बोले कुलपति
राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा के कुलपति मेवालाल चौधरी का कहना है कि बदलते बिहार में मजदूरों की माली हालत मजबूत करने में मशरूम की खेती वरदान साबित हो रही है। कम लागत में ज्यादा मुनाफा तथा बाजार की अपार संभावना। सभी कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रभारी को आदेश दिया गया है कि वह मशरूम खेती के प्रशिक्षण के साथ-साथ इच्छुक लोगों को बीज उपलब्ध करावें। विश्वविद्यालय परिसर में सालों भर बीज उपलब्ध है। बिहार के सभी जिलों में एक अभियान के तहत जागरुकता कार्यक्रम चल रहा है। पर्याप्त उत्पादन होगा तो इसे मिड डे मिल योजना में शामिल कराने के लिए पहल होगी।

जमीन के बिना भी खेती करने का कमाल दिखाया महिलाओं ने

नक्सल आतंक से पीड़ित महिलाएं कर रही हैं मशरूम की खेती


जमीन के बिना खेती नहीं हो सकती, लेकिन मशरूम की खेती के जरिए इसे संभव बनाया है छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर (दंतेवाड़ा) जिले के कासौली राहत शिविर में निवासरत मॉ शारदा स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने। नक्सल हिंसा और आतंक के चलते घर छोड़ने को मजबूर ग्रामीण परिवारों की ये गरीब महिलाएं अपने बुलंद हौसलों और कड़ी मेहनत से न केवल बंद कमरे में मशरूम की खेती कर अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण अच्छी तरह कर रही है बल्कि भूमिहीन लोगों के सामने उन्होंने आत्मनिर्भरता का एक उदाहरण भी पेश किया है।
     ज्ञातव्य है कि नक्सल पीड़ित दक्षिण बस्तर जिले के अनेक गांवों के लोग नक्सल हिंसा और आतंक से त्रस्त होकर अपना घर-बार, खेत-बाड़ी को छोड़ कर राज्य शासन की मदद से विभिन्न शिविरों में अपना गुजर बसर कर रहे हैं। शिविर में रह रहे लोगों को राज्य सरकार जहॉ मूलभूत सुविधाएं मुहैया करा रही है वहीं इन ग्रामीणों को अपने पैरों में खड़े होने तथा उन्हें आत्मनिर्भर बनाने विभिन्न व्यवसाय मूलक प्रशिक्षण एवं सहायता भी शासन की ओर से दी जा रही है। इसी कड़ी में जिले के गीदम विकासखण्ड स्थित कासौली राहत शिविर में रहने वाली महिलाएं मलको, सिमरी, राधा, कुमली, लाखे, नहिनों, पाइके, चिमरी, पाकली, चमली तथा सीते ने मॉ शारदा स्व सहायता समूह का गठन किया और बिना भूमि की खेतीमशरूम उत्पादन का निर्णय लिया। इस समूह को विशेष राहत योजना के तहत शासन द्वारा आवश्यक प्रशिक्षण एवं सुविधाएं मुहैया करायी गयी और आज इस समूह की महिलाएं बिना भूमि के केवल एक बंद कमरे में मशरूम का विपुल उत्पादन कर न केवल आत्मनिर्भर हुयी है बल्कि सभी को दातों तले उंगली दबाने को मजबूर कर दिया है।  
          उल्लेखनीय है कि शाकाहारी एवं मांसाहारी सभी लोगों की विशेष पंसद मशरूम आज व्यजंनो में अपना विशेष महत्व रखता है। कम लागत, हर मौसम में बिना भूमि के मात्र एक बंद कमरे में कम मेहनत एवं आसानी से उत्पादन होने के कारणमशरूम की दिनोदिन मांग एवं महत्व बढ़ता जा रहा है। समूह की अध्यक्ष श्रीमती मलकों कहती है कि वे लोग नक्सल हिंसा के चलते अपना घर, खेत-बाड़ी को छोड़कर सुरक्षा हेतु शिविरों में आना पड़ा यहॉ वे लोग दैनिक मजदूरी कर अपना जीवन निर्वहन कर रहे थे परंतु अब मशरूम उत्पादन से उन्हें अच्छी आमदनी होने लगी है। वो बताती है कि कम पूंजी और मात्र 20 से 25 दिनों में मशरूम का उत्पादन होने लगता है। मशरूम उत्पादन हेतु स्पॉन (बीज) 40 से 50 रूपये प्रति किलो की दर से बाजार में आसानी से मिल जाता है और एक किलो बीज से 10 से 15  किलों मशरूम का उत्पादन होता है। समूह की सदस्य श्रीमती पाइके बताती है कि जब हमें कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जा रहा था तब हमें यह बहुत ही कठिन लग रहा था परंतु यह तो बहुत ही आसानी से होता है। समूह की अन्य सदस्य श्रीमती चिमरी बताती है कि मशरूम तैयार करने के लिए धान अथवा गेहूं की भूसी के गोले बनाकर उसमें स्पॉन मिलाकर पालीथीन में डालकर नमीयुक्त छप्पर के नीचे रखते है । नमी बनाये रखने के लिए समूह के सदस्य बारी-बारी से इसमें पानी का छिड़काव करते है और खाली समय में महिलाएं अपने घर एवं मजदूरी का कार्य करती है। सदस्य श्री नहिनों कहती है कि प्रतिदिन 3 से 4 किलों मशरूम का उत्पादन हो जाता है तथा बारिश के दिनों में 100 से 150 रूपये तथा गर्मियों में 200 से 250 रूपये प्रति किलो की दर से मशरूम बिक जाता है। मशरूम खरीदने गीदम एवं दंतेवाड़ा से लोग कासौली आते है वहीं गीदम बाजार में हाथो-हाथ मशरूम अच्छी कीमत में बिक जाता है। आज मशरूम की बिक्री से समूह के खाते में 15 हजार रूपये भी जमा हो गये है। वहीं समूह की महिलाओं ने बिक्री में से एक-एक हजार रूपयों से अपने-अपने घर की जरूरतों का समान भी खरीद लिया है। मशरूम की बढती मांग को देखते हुए समूह की महिलाएं काफी उत्साहित है और इसे बड़े पैमाने पर इसकी खेती करने की ठान ली है।
          कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि मशरूम पौष्टिकता की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है। इसमें प्रोटीन, फाइबर्स एवं फोलिक एसिड के तत्व समाहित होते हैं जो स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी लाभदायक होते हैं। आज मशरूम के इन्ही गुणों के कारण इसकी मांग बढ़ती जा रही है। शहरों में मशरूम के आचार, मुरब्बा एवं सूप पाउडर के साथ ही दवाईयों में भी इसकी खासी मांग है। मॉ शारदा स्व सहायता समूह की सफलता को देखकर अन्य महिलांए एवं समूह भी इस और आकृष्ट हो रहे है।

फाइव स्टार होटलों में होगी मशरूम की सप्लाइ


 बिहारशरीफ( नालंदा) : ऑएस्टर मशरूम के बाद बटन मशरूम का उत्पादन भी जिले में शुरू हो गया है. परबलपुर प्रखंड के मिर्जापुर गांव की रिंकू देवी मशरूम का व्यावसायिक उत्पादन करनेवाली जिले की पहली महिला बन गयी है.
सोमवार को रिंकू देवी द्वारा उत्पादित 12 किलो बटन मशरूम की मार्केटिंग शुरू हो गयी. जिला कृषि पदाधिकारी सुदामा महतो ने बटन के मार्केटिंग की शुरुआत करते हुए कहा कि जिले में ऑएस्टर मशरूम का उत्पादन तो बड़े पैमाने पर किया जा रहा है.
प्रतिदिन 20 से 25 क्विंटल ऑएस्टर मशरूम का उत्पादन जिले की महिला समूहों द्वारा किया जा रहा है,लेकिन बटन मशरूम का उत्पादन न होने से एक कसक थी. बटन मशरूम की काफी मांग थी. कई नामी-गिरामी होटलों द्वारा ऑएस्टर मशरूम की जगह बटन मशरूम की मांग की जा रही थी. स्थानीय स्तर पर भी लोग बटन मशरूम की मांग कर रहे थे.
अब जिले में बटन मशरूम का उत्पादन शुरू होने से इस मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी. श्री महतो ने बताया कि जिले में महिलाओं के करीब 900 समूह बने हुए हैं,सभी आत्मा द्वारा निबंधित हैं. इन महिलाओं को प्रशिक्षण की सुविधा के साथ ही उत्पादित सामान के विपणन में आत्मा सहयोग कर रहा है.
राष्ट्रीय बागबानी मिशन के सहयोग से राजगीर में स्पॉन लैब खोला गया है. इन प्रयासों के माध्यम से जिले में मशरूम उत्पादन कर अच्छी आय प्राप्त हो रही है. जिला कृषि पदाधिकारी सुदामा महतो ने बताया कि बटन मशरूम के उत्पादन की तकनीक व प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए जिले की पांच महिलाओं को राष्ट्रीय खुंब अनुसंधान केंद्र सोलन,हिमाचल प्रदेश भेजा गया था, जिसका नतीजा सामने है.
जिस प्रकार से यहां की महिलाएं खेती व मशरूम उत्पादन में मेहनत कर रही हैं,उससे उम्मीद बनती है कि निकट भविष्य में नालंदा मशरूम उत्पादन में अपना एक अलग पहचान बनाने की राह पर है.
डीएओ श्री महतो ने मिर्जापुर गांव जाकर बटन मशरूम उत्पादन यूनिट को भी देखा. इस अवसर पर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के परामर्श दाता कुमार किशोर नंदा,विषय वस्तु विशेषज्ञ मो आलमगीर अनवर व तकनीकी सहायक अक्षय नंदन प्रसाद आदि मौजूद थे.
 

मटन मशरूम बनाने की विधि

मटन मशरूम बनाने के लिए सामग्री
500 ग्राम मटन, 500 ग्राम मशरूम, 350 ग्राम दही, 1 किलो प्याज, 12 कलि लहसुन, 1 इंच पिसा अदरक, 5 -6 बड़े चम्मच घी या तेल, 1 छोटी चम्मच चम्मच पिसा गरम मसाला, 1 छोटी चम्मच पीसी लाल मिर्च, 4 छोटी चम्मच पिसा धनिया, 5 -7 तेजपत्ते, हरा धनिया व कटी हरी मिर्च|

विधि
सबसे पहले पिसा लहसुन, अदरक , पिसा धनिया, लाल मिर्च, हल्दी व नमक को दही में भली भांति मिलाकर रख लें|
फिर इसमें धूले मटन मिलाकर व ढककर छह- साथ घंटे तक अलग रख दें|
प्याज व मशरूम को दो भागों में काट लें| कुकर में तीन बड़े चम्मच तेल गर्म करके इसमें तेजपत्ते व प्याज डालकर प्याज को सुनहरी भून लें| कुछ समय बाद दही मिश्रण समेत मटन डालकर भली भांति भून लें| मटन को सिटी देकर अच्छी तरह गला लें|
बाकी बची प्याज को भुनकर व कटे मशरूम डालकर नरम कर लें|
अब सूखे मटन में मशरूम मिश्रण डालकर भली भांति भून लें|
अंत में गरम मसाला, कटा हरा धनिया व हरी मिर्च बुरककर स्वादिष्ट मटन मशरूम पेश करें|

मशरूम उत्पादन कर हुआ आत्मनिर्भर



कभी दिहाड़ी मजदूरी करने वाला मजीर अंसारी आज का मशरूम उत्पादक बन गया है। सरैयाहाट प्रखंड स्थित बाबूडीह गांव का रहने वाले मजीर ने इसे धंधे के रुप में अपना कर जीविकोपार्जन का आधार बना लिया है। मजीर कहता है कि एक दौर था जब वह दिहाड़ी मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करने में विफल था। कभी-कभी तो एक शाम भूखे सोने की भी लाचारी आन पड़ती थी, पर अब बात दूसरी है। आज वह न सिर्फ मशरूम उत्पादन कर आत्मनिर्भर बन गया है बल्कि दूसरे भी उससे प्रेरित होकर मशरूम की खेती करने लगे हैं। बाबूडीह निवासी नजीर मेरठ एवं दिल्ली जैसे शहरों में मजदूरी करके ऊब चुका था। फिलहाल वह प्रशिक्षण हासिल कर मशरूम की खेती कर रहा है। मो.नजीर ने बताया कि 200 ग्राम मशरूम का बीज लगाकर वह दो-ढाई सौ रुपया कमा लेता है। मशरूम उत्पादन में उसका परिवार भी सहयोग कर रहा है और अब उसकी चाहत है कि बड़े पैमाने पर मशरूम की खेती करे। हालांकि उसने कहा कि इसके लिए पूंजी की कमी है। ऐसे में अगर सरकारी स्तर पर मदद मिल जाए तो बात बन सकती है। नाजीर कहता है कि यह सही है कि लोकल मार्केट में मशरूम का डिमांड कम है, इसके बावजूद दिहाड़ी मजदूरी करने से यह काफी बेहतर व इज्जत का काम है। मशरूम की खेती कर महीने में पांच-छह हजार रुपये की आमदनी है जो कि बेहतर है।

मशरूम उत्पादन युवाओं के लिए बेहतर व्यवसाय

मशरूम यानी खुंबी। इसे गांवों में छतरी व कुकरमुत्ता आदि नामों से जाना जाता है। दरअसल मशरूम को मृत कार्बनिक पदार्थों पर उगने वाला एक मृतजीवी कवक भी कहते हैं। यह खुंबी उत्पादन ग्रामीण युवाओं के लिए अच्छा व घरेलू व्यवसाय साबित हो सकता है।


शैक्षिक योग्यता
प्रशिक्षण कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए आयु सीमा व शैक्षिक ज्ञान संबंधी कोई अनिवार्यता नहीं होती, फिर भी तमाम तकनीकी पहलुओं को समझने के लिए मिडिल या दसवीं पास होना बेहतर है।
पाठयक्रम का स्वरूप
मशरूम उत्पादन में रुचि लेने वाले उम्मीदवारों के लिए देशभर के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों व कृषि अनुसंधान केंद्रों में साप्ताहिक, पाक्षिक तथा मासिक अवधि के कोर्स संचालित किए जाते हैं। इन पाठय़क्रमों का उद्देश्य मशरूम उत्पादन की नई-नई तकनीक व बीजों की अच्छी नस्ल से परिचित कराना है।
विभिन्न किस्में
खुंबियों में एगैरिकस बाइपोरस, वालवैरियल्ला स्पीसिज, प्ल्यूरोटस स्पीसिज, लेन्टाइनस इडोसिस और फलैम्यूलाइना बेल्यूटाइप्स प्रमुख हैं, लेकिन भारत में पहली तीन खुंबियों की खेती की जाती है।
सरकारी ऋण व्यवस्था
मशरूम उत्पादन को स्वरोजगार के रूप में अपनाने वाले उम्मीदवारों को सरकार व राज्य सरकार की ओर से आर्थिक सहायता की व्यवस्था यह सहायता कृषि मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा दी जाती है। इसमें पांच लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता का प्रबंध है। गौरतलब है कि मशरूम उत्पादन से जुड़े एससी/ एसटी उम्मीदवारों को सरकारी ऋण में राहत की भी
व्यवस्था है।
मशरूम के लिए जलवायु
मशरूम उत्पादन के लिए अलग-अलग जलवायु या वातावरण की आवश्यकता होती है। टेम्परेंट मशरूम के लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान व 70 से 90 फीसदी नमी जरूरी है।
इसका उत्पादन अक्तूबर से फरवरी के बीच ठीक रहता है। ऑयस्टर मशरूम के लिए तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तथा नमी 80 फीसदी से अधिक होनी चाहिए। इसके उत्पादन के लिए सितम्बर-अक्तूबर का महीना बेहतर माना जाता है। वॉल वैरियल्ला के लिए तापमान 30 से 40 डिग्री सेल्सियस व नमी 80 से ज्यादा होनी चाहिए। इसका उत्पादन अप्रैल से अक्तूबर के बीच किया जाता है। मशरूम उत्पादन में जलवायु का खास महत्त्व है, अत: इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
प्रशिक्षण संस्थान
राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास फाउंडेशन बागवानी भवन, पंखा रोड, सागरपुर, नई दिल्ली
पादपरोग संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली।
राष्ट्रीय खुंब अनुसंधान केंद्र, चम्बाघाट, सोलन, हिमाचल प्रदेश।
स्नोव्यू मशरूम लैब एवं ट्रेनिंग सेंटर, नरेला, दिल्ली-40
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना पंजाब-141004
हिसार कृषि अनुसंधान, हिसार, हरियाणा
इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीटयूट, इलाहाबाद, यूपी
आणंद एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, आणंद, गुजरात
जेबी पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, पंत नगर, उत्तरांचल-263145
मशरूम : पौष्टिक आहार
मशरूम एक पौष्टिक आहार है। इसमें खनिज, लवण, विटामिन तथा एमीनो एसिड जैसे पौष्टिक तत्त्व पाए जाते हैं। मशरूम हृदय रोग एवं मधुमेह जैसी बीमारियों के इलाज में सहायक है। मशरूम में फोलिकएसिड तथा लावणिक तत्त्व पाए जाते हैं, जो खून में लालकण बनाने में मददगार होते हैं।

मशरूम का उत्पादन कर महिलायें बन रही आत्मनिर्भर

हिलसा(नालंदा), निज प्रतिनिधि : राज्य सरकार द्वारा कृषि के क्षेत्र में दिये जा रहे प्रोत्साहन से आगे आकर हिलसा प्रखंड की महिलायें आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही है। प्रखंड में तकरीबन 15 से अधिक कार्यरत स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाये मशरूम का उत्पादन कर काफी अच्छी आमदनी कर रही है। यहां की महिलाओं के द्वारा उत्पादित मशरूम की मीनू राजधानी के नामी-गिरामी होटलों में शामिल हो रही है। ठंड के मौसम में क्षेत्र में महिलायें मशरूम का अच्छा उत्पादन कर रही है। मगध महिला उद्यमिता विकास समूह कृष्णापुर हिलसा की कुमारी अल्पना सिन्नी मशरूम का उत्पादन कर काफी खुश है। उसके द्वारा उत्पादित मशरूम पटना के होटलों के मीनू में शामिल हो रही है। कुमारी अल्पना सिन्नी का कहना है कि सरकार के द्वारा इसके उत्पादन के लिए स्पौन, पारमोलीन, वाविस्टीन, पालिथीन बैग आदि दी जा रही सहायता से हमलोग की आत्मनिर्भरता बढ़ी है। स्थानीय प्रखंड कृषि पदाधिकारी रामदेव राम, प्रखंड आत्मा अध्यक्ष भारतेन्दु आनंद एवं नालंदा जिला आत्मा का काफी सहयोग मिला है और हमें घर में ही रहकर अच्छी आमदनी हो रही है। प्रखंड कृषि पदाधिकारी रामदेव राम के अनुसार प्रखंड में 15 से अधिक महिलाओं का स्वंय सहायता समूह मशरूम के उत्पादन में जुटी है। राजगीर महोत्सव में महिलाओं ने स्टाल लगाकर उत्पादित मशरूम का प्रदर्शन की। इसके उत्पादन के लिए प्रशिक्षक मीना कुमारी एवं रंजू कुमारी एवं कृषक सलाहकार सक्रिय रहते हैं।

मशरूम की खेती ने बदली महिलाओं की तकदीर

साहिबगंज,जासं : मशरूम की खेती से जिले की महिलाएं न केवल कम लागत में अधिक मुनाफा कमा रही हैं बल्कि उनकी तकदीर ही बदल गई है। जनवरी माह में जिला कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से जिले की 46 महिलाओं को मशरूम की खेती के लिए प्रशिक्षण दिया गया था और बाद में बोरियो प्रखंड की 92 महिला स्वयं सहायता समूहों को स्वरोजगार के लिए 10-10 हजार रूपये का चेक भी दिया गया था ताकि महिलाओं में सशक्तिकरण आ सके। बाद में बरहड़वा,बरहेट व बोरियो प्रखंड की महिलाओं को मशरूम की खेती का प्रशिक्षण दिया गया सभी महिलाओं ने इसे रोजगार का जरिया बनाया और आज वे खूशहाल हैं। जिला कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक किरण मेरी कंडीर का कहना है कि मशरूम न केवल एडस जैसे भयानक रोग से बचाने की क्षमता रखता है वरन उच्च रक्त चाप, मधुमेह,हृदय रोग, मोटापा,गठिया,एलर्जी व कैंसर से भी लोगों को बचाने की क्षमता रखता है। यह कई विटामिनों से भी लवरेज है।
साहिबगंज के जिला कृषि विज्ञान केंद्र की वैज्ञानिक किरण मेरी कंडीर का कहना है कि मशरूम की खेती काफी कम खर्च में अधिक मुनाफा देने वाला होता है। इसके लिए काफी अधिक जगह की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसकी खेती के लिए घर के किसी भी कमरे का बेकार पड़े गैरेज का उपयोग किया जा सकता है। इसमें पुआल की कुट्टी का डेढ़ इंच का स्तर बनाकर उसमें मशरूम के बीज डाले जाते है। इससे पहले इसमें कुछ रसायन का प्रयोग करते है। 20 दिन के बाद कुट्टी पर सफेद रंग के जाल दिखने लगते है, जो 30 दिनों के बाद तैयार होने लगता है। मशरूम में काफी मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। जो छोटे बच्चे और बूढ़ों के लिए काफी फायदेमंद होता है। मशरूम में उतना ही प्रोटीन होता है, जितना की किसी भी प्रकार के मांस में होता है इसलिए वैसे लोग जो शाकाहारी होते है, प्रोटीन के लिए इसका प्रयोग कर सकते है। इसकी खेती घर का सारा काम करने के बाद बचे समय में मशरूम की खेती किया जा सकता है। इसके लिए अलग से समय देने की आवश्यकता नही पड़ती है। मशरूम की खेती से जिले की महिलाओं की बेरोजगारी का भी हल निकाला जा रहा है बरहड़वा प्रखंड की रेशमी देवी ने बताया कि मशरूम की सब्जी बनाकर खाती भी हैं और बेचकर भी मुनाफा कमाती हैं। जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में जब धान का पुआल सड़ने लगता है तो इससे मशरूम निकलता है और गांवों में लोग इसकी सब्जी बनाकर बड़े चाव से खाते हैं जिससे न केवल उन्हें रोगों से मुक्ति मिलती है बल्कि वे बाजारों में इसे बेचकर भी लाभ कमाते हैं। साहिबगंज जिले के ग्रामीण हाटों से लेकर बाजारों में भी मशरूम बेची जाती है।

मशरूम की खेती

वर्तमान समय में बढती  हुई जनसंख्या के कारण लगातार कृषि जोत भूमि घटती जा रही है जिसके कारण पौष्टिक खाद्य पदार्थ का उत्तपादन कर पाना एक समस्या बनता जा रहा है | इस  परिस्थिति में मशरूम की खेती करना आवश्यक समझा जाने लगा है | क्योकि मशरूम में प्रोटीन , विटामिन एवं खनिज लवण पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है तथा इसकी खेती के लिए खेत की जरूरत भी नहीं पड़ती है, बस एक छायादार कमरे के अन्दर चाहे वो घास का हो या कच्चे या पक्के मकान का एक कमरा हो, बस हवा का आवागमन एवं पानी की सुविधा हो बस हम सुगमता पूर्वक मशरूम की खेती  कर सकते है | इसकी खेती की एक और विशेषता होती है की यह अन्य सब्ब्जी या अनाज की भाति अधिक समय नहीं लेती है |  यदि बिज उपलब्ध हो तो ३० दिन के अन्दर इसकी फसल तैयार हो जाती है |  और अगर हम इसका तापमान नियंत्रित कर सके तो हम इसकी खेती सालभर कर सकते है |
और इसकी खेती करना भी बहुत आसन है बस हमें गेहू का भूसा, धान की पुआल, ज्वार या फिर बाजरे का डंठल चाहिए | हमें  भूसे को साफ पानी से भिगान है और उस भीगे हुए भूसे को एक पालीथीन में भरना है और भूसा भरते समय ही एक लेयर भूसे का एवं उसके ऊपर कुछ बिज मशरूम के फिर एक लेयर भूसे का  और एक लेयर मशरूम के बिज का इसी तरह कर के  रख देना है ताकि भूसा चारो तरफ फ़ैल ना सके और उस पालीथीन में कुछ सुराख़ भी कर देना चाहिए जिससे की हवा आ, जा सके और प्रतिदिन भूसे पर साफ पानी का छिडकाव करना चाहिए | बस ३० दिनों के अन्दर मशरूम तैयार हो जायेगा |
हमारे देश में बहुत से किसान इन फसल अवशेष को जला देते है जिससे की वायु में प्रदुषण बढ़ जाता है और पर्यावरण असंतुलित हो जाता है जिसका प्रभाव प्रकृति में रहने वाले अन्य जीवो पर पड़ता है | अतः मशरूम की खेती  करने से पर्यावरण को सुरछित रखा जा सकता है | मशरूम उत्तपादन के पश्चात् जो भी फसल का अवशेष बचाता है उसका उपयोग हम जैविक खाद बनाने में ला सकते है एवं अपने खेतो में डाल सकते है | जिससे की खेत की उरवरा शक्ति में में ब्रिधि होगी, तथा खेत में जीवाष्म की मात्रा बढ़ेगी| इस तरह करने पर हमारे खेत की भौतिक एवं रासायनिक संरचना में सुधार होता है |

मशरूम ने बदली किसानों की जिंदगी

मशरूम की खेती से छत्तीसगढ़ के किसानों की जिंदगी बदल रही है। राज्य के बागवानी विभाग ने किसानों को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग दी है और इस वजह से कई किसानों ने इस ओर कदम रखा है।

रायपुर के पास स्थित जोरा गांव के किसान माधव वर्मा को अब पता चल गया है कि मशरूम कितना 'स्वादिष्ट' होता है। इस किसान ने छोटे से इलाके में मशरूम की खेती कर इस साल मोटा मुनाफा कमाया है। वैसे वर्मा अकेले ऐसे किसान नहीं हैं।

राज्य के बागवानी विभाग ने नैशनल हॉर्टिकल्चर मिशन के तहत सात जिलों के करीब सात हजार किसानों को मशरूम की  खेती की ट्रेनिंग दी है। मिशन के तहत मशरूम की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान इसकी खेती का रुख कर सकें।

कवर्धा कृषि महाविद्यालय के डीन और राज्य के वरिष्ठ मशरूम वैज्ञानिक डॉ. एम. पी. ठाकुर ने कहा कि शुरुआती दौर में इसके काफी अच्छे नतीजे सामने आए हैं और किसानों ने मशरूम की खेती में काफी दिलचस्पी ली है। उन्होंने कहा कि इस साल मशरूम का उत्पादन काफी हद तक बढ़ने की उम्मीद है।

सूत्रों ने कहा कि पिछले साल कुल सात हजार टन मशरूम का उत्पादन हुआ था, लेकिन इस साल इसके दस हजार टन तक पहुंचने की उम्मीद है। ठाकुर ने कहा कि आने वाले वर्षों में छत्तीसगढ़ में भी मशरूम की खेती होगी। गौरतलब है कि यहां धान की अच्छी पैदावार होती है।

राज्य सरकार ने मशरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए न सिर्फ अभियान चलाया बल्कि इसके लिए किसानों को ट्रेनिंग भी दी। जोरा गांव के किसान माधव वर्मा ने कहा कि जब अधिकारियों ने मुझे मशरूम की खेती के फायदे बताए तो मैंने इस साल पहली बार इसकी खेती शुरू की।

उन्होंने कहा कि न्यूनतम निवेश और कम समय में मैंने काफी मुनाफा कमाया। वर्मा 200 वर्गफीट क्षेत्र में मशरूम की खेती करते हैं और इससे उन्हें एक-डेढ़ लाख रुपये की आय हुई। अधिकारियों ने बताया कि राज्य में मशरूम की विभिन्न किस्मों की कीमतें 80 रुपये से 100 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर है।

राज्य में रायपुर, कोरबा, बस्तर, सरगुजा, बिलासपुर, दुर्ग और कवर्धा जिलों की पहचान मशरूम की खेती के लिए की गई है। हर जिले से करीब एक हजार किसानों का चयन कर उन्हें रायपुर विश्वविद्यालय में ट्रेनिंग दी गई है। अधिकारियों ने बताया कि इस साल कुल सात हजार किसानों को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग दी जा चुकी है।   

मशरूम पुलाव बनाने की विधि

मशरूम पुलाव बनाने में इस्तिमाल होने वाली सामग्री
500 ग्राम सफ़ेद बड़े मशरूम, चार कटोरी चावल, एक कप कसा हुआ पनीर, दो बड़ी चम्मच मक्खन, चार बड़े टमाटर, चार बड़े प्याज, तिन छोटी चम्मच पिसा नमक, तिन बड़ी चम्मच घी या तेल, दो चुटकी काली मिर्च

विधि
सबसे पहले चावलों को बीनकर पानी से अच्छी तरह धो लें और फिर चावलों को पानी में भीगने रख दें|
मशरूम के छोटे छोटे टुकड़े गर्म घी या तेल में हल्के से तलकर शेष घी या तेल में कटी प्याज को सुनहरी तल लें|
अब कटे हुए टमाटर में नमक व थोड़ी सी काली मिर्च डालकर भुन लें| जब टमाटर का रस सुख जाये तो इसमें तले हुए पनीर व मशरूम मिलाकर ढक्कन बंद कर दें तथा पांच मिनट तक धीमी आंच में पकाएं|
इसके बाद डेढ़ छोटी चम्मच नमक, दो चुटकी काली मिर्च तथा मक्खन डालकर चावल पकाएं|
अब ओवन की दिशा में सबसे नीचे चावल, उसके ऊपर मशरूम तथा चावल बिछा दें|
अंत में छह सात तले मशरूमों को सजाकर 10 मिनट तक बेक करें|
इस तरह आपका स्वादिश मशरूम पुलाव तैय्तार हो जाएगा|

लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद

रोजगार और पैसा दिलाये ‘धन की छतरी’

पूर्ण रूप से शाकाहारी भोज्य पदार्थ मशरूम (खुम्ब) का उत्पादन हाल के वषा] से दूसरे व्यवसायों की अपेक्षा कम समय में अधिक पैसा प्रदान करने वाले उद्योग के रूप में पनपा है। हालांकि ब़डे स्तर पर मशरूम उत्पादन के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है पर एक छोटे से कमरे में बहुत कम पूंजी लगाकर भी आप मोटा मुनाफा कमा सकते हैं, लेकिन इसके लिए यह अपेक्षित है कि मशरूम उगाने से पहले आपको इसकी खेती के बारे में कुछ बुनियादी बातों की जानकारी हो।
मशरूम मुख्यतः दो प्रकार के होते हैंः विषैले तथा विषरहित। आपने बारिश के दिनों में अपने आप उग जाने वाले कुछ मशरूम देखे होंगे, वो विषैले होते हैं, लेकिन वैज्ञानिक तरीके से घर या खेत में उगाए जाने वाले मशरूम विषरहित तथा पौष्टिक होते हैं। इनमें पौष्टिकता के साथसाथ खनिज, प्रोटीन तथा विटामिन्स का भी भंडार होता है तथा रोगकारक कोलेस्ट्रॉल, शक्कर और सोडियम जैसे तत्वों की मात्रा भी बहुत कम होती है, जिससे ये उच्च रक्तचाप मधुमेह के रोगियों के लिए भी एक सुरक्षित खाद्य पदार्थ है।
विषरहित मशरूम की भी कई किस्में हैं, जिनमें से भारत में तीन प्रकार के मशरूम (पैडस्ट्रा मशरूम, सफेद बटन मशरूम तथा ढींगरी मशरूम) ही अधिक उगाए जाते हैं। इनमें भी ढींगरी मशरूम की खेती सबसे ज्यादा होती हैं, क्योंकि इसकी उपज दूसरे मशरूमों की अपेक्षा प्रति वर्ग मीटर २३ गुना अधिक मिलती है। 
कितना करें पूंजी निवेश?
अगर आप घर में ही मशरूम उगाना चाहते हैं, तो इसके लिए शुरुआती तौर पर १०००१५०० रुपये तक के खर्च में ही इसकी शुरुआत कर सकते हैं और शुरू में ही लागत से चार गुना तक लाभ कमा सकते हैं। कुछ ही समय बाद आप घर में ही मशरूम उगाकर हर महीने से १५ हजार रुपये तक कमा सकते हैं। अगर आप ब़डे स्तर पर अर्थात्खेत में मशरूम उगाना चाहें तो इसके लिए सरकार द्वारा ऋृण की सुविधा भी प्रदान की जाती है, जिस पर करीब ३५ फीसदी तक सब्सिडी भी मिलती है।
लाभ की छतरी
मशरूम को हमलाभ की छतरीइसलिए कह रहे हैं, क्योंकि एक बार पॉलीथीन बैग में मशरूम के बीज उगाकर आप उसी से लगातार पांच बार तक फसल प्राप्त कर सकते हैं। पॉलीथीन बैग में मशरूम के बीज डालने के २०२२ दिन बाद ही पौधे में फूल जाते हैं, जो मशरूम की फसल कहलाते हैं। उसके ४५ दिन बाद ही पौधे में कलियां निकलनी शुरू हो जाती हैं। जब मशरूम का फूल पूरी तरह खिल जाए, तब उसे त़ोड लिया जाता ह्ै। एक बार मशरूम त़ोडने के बाद मशरूम वाले बैग में दोबारा पानी देने से १०१२ दिनों बाद फिर से फसल तैयार हो जाती है और इसी तरह यह प्रक्रिया पांच बार तक चलती है यानी एक बार की लागत में पांच बार फसल मिलती है।
कहां उगाएं मशरूम?
ब़डे स्तर पर मशरूम की खेती करने के लिए खेत का चुनाव कर सकते हैं, लेकिन अगर घर में ही मशरूम उगाना चाहें तो उसके लिए इस बात का ध्यान रखें कि जहां भी आप मशरूम उगाना चाहें, वहां का तापमान ठंडा होना चाहिए। आप घर के ही किसी खाली कमरे का भी मशरूम उत्पादन के लिए उपयोग कर सकते हैं, लेकिन यह अवश्य ध्यान रखें कि जहां भी आप इसका उत्पादन करना चाहें, उस कमरे में सूर्य की किरणें सीधी पहुंचती हों और कमरे का तापमान २०३० डिग्री सेंटीग्रेड के बीच ही हो, कमरे में आर्द्रता (नमी) भी ६० प्रतिशत से अधिक हो।
कहां से प्राप्त करें कच्चा माल?
मशरूम उगाने के लिए चावल, गेंहू, जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास, गन्ना इत्यादि की सूूखी पत्तियों, डंठल भूसे की तथा कपास के व्यर्थ अवशेष पदाथा], मक्का के छिले हुए भुट्टों, मूंगफली के छिलकों, सूखी घास, इस्तेमाल की हुई चाय की पत्ती इत्यादि की जरूरत होती है और इस प्रकार के कृषि अवशेष हमें खेतों से आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। इसके अलावा मशरूम के बीज आप बाजार से या किसी कृषि विज्ञान केन्द्र से खरीद सकते हैं।
कैसे करें बुवाई?
पानी में फार्मेलीन मिलाकर पानी को कीटाणुरहित करके इसमें उपरोक्त कच्चे माल (कृषि अवशेषों) को ८१० घंटे तक भिगो दें और इस अवशेष को पॉलीथीन के बैगों में भर दें। इन्हीं बैगों में बीचबीच में मशरूम के बीज डालते जाएं। बीजों को अंकुरित होने के लिए हवा मिलती रहे, इसके लिए पॉलीथीन बैगों में बीचबीच में कुछ सुराख कर दें। अब इन बैगों को ऊपर किसी सहारे से बांधकर लटका दें।
कितना मिलेगा उत्पादन?
अगर आप एक साधारण आकार के कमरे में मशरूम उगा रहे हैं, तो यह मानकर चलें कि आपको एक बार की लागत में मिलने वाली पांच बार की फसलों से ही ५००१००० किलो तक मशरूम प्राप्त हो जाएगाऔर चूंकि थोक बाजार में ही ताजी मशरूम का भाव ५५७० रुपये किलो तक है, अतः आपको ५० रुपये किलो के हिसाब से बिकने पर भी कम से कम २५०० रुपये की कीमत तो वसूल हो ही जाएगी।
कहांं बेचें?
आजकल कई प्रकार के देशीविदेशी व्यंजनों में मशरूम की खास डिमांड रहती है, अतः खासकर ब़डेब़डे होटल मशरूम के सबसे ब़डे ग्राहक है। इसलिए आप सीधे इन होटलों से सम्पर्क कर सकते हैं या फिर सब्जी मंडियों में ब़डे व्यापारियों को भी मशरूम बेच सकते हैं।
कहां से लें प्रशिक्षण?
अगर आप व्यावसायिक स्तर पर मशरूम का उत्पादन शुरू करना चाहते हैं, तो इसके लिए बेहतर हैं कि आप मशरूम की खेती वैज्ञानिक तरीके से करने के लिए इसका विधिवित प्रशिक्षण लें। अधिकांश कृषि विज्ञान महाविद्यालयों तथा कुछ निजी संस्थाआें द्वारा यह प्रशिक्षण दिया जाता है, जो ५७ दिन का ही होता है और इसके लिए ५००२५०० रुपये तक ही फीस लगती है।