गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

मशरुम की खेती

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के अंतर्गत काम करने वाले भारतीय बाग़वानी अनुसंधान संस्थान बंगलुरू ने घरेलू स्तर पर मशरूम उत्पादन को प्रोत्साहित करने का एक कार्यक्रम तैयार किया है, जिसके तहत महिलाओं को घर बैठे उपभोग के लिए मशरूम मिलने के अलावा आय अर्जित करने का भी मौक़ा मिलता है. संस्थान की मशरूम प्रयोगशाला ने घरेलू स्तर पर मशरूम पैदा करने की ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे एक वर्ग फुट क्षेत्र में 5.5 फुट की ऊंचाई तक 1.5 से 2 किलोग्राम तक मशरूम का उत्पादन किया जा सकता है.

    संस्थान ने नारंगी रंग का खूबसूरत मशरूम पैदा करने की तकनीक विकसित की है, जो गमले रखने वालों और पुष्प प्रेमियों के लिए एक आकर्षण है. मशरूम को प्रोत्साहित करने का एक लाभ यह भी है कि पैदावार के बाद इसकी बची-खुची सामग्री जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने और जैविक खाद तैयार करने में सहायक सिद्ध होती है.

मशरूम प्रति इकाई क्षेत्र में अधिकतम प्रोटीन देता है. इसे घर के किसी भी नमी वाले कोने में उगाया जा सकता है. महिलाएं इसे किचन गार्डन गतिविधि के रूप में अपना सकती हैं. वैसे भी देश की 50 प्रतिशत महिला आबादी कृषि से जुड़ी गतिविधियों में 90 प्रतिशत का योगदान करती है. घर में ही मशरूम की खेती करना महिलाओं की कार्यशैली और प्रबंध कौशल के सर्वथा अनुकूल है. शाकाहारी परिवारों की प्रोटीन की ज़रूरत को पूरा करने के लिए प्रोटीन से भरपूर मशरूम की खेती घर में बहुत आसानी के साथ की जा सकती है.

घर में मशरूम पैदा करना और परिवार के प्रत्येक सदस्य को 100 ग्राम मशरूम उपलब्ध कराने का मतलब है हृदय रोग के खतरे को कम करना, क्योंकि मशरूम में कोलेस्ट्रोल कम करने की क्षमता है. यह मधुमेह को नियंत्रित करता है और कैंसर रोगियों की कीमोथेरेपी के बाद होने वाले साइड इफेक्ट को भी कम करता है. यही नहीं, यह केलेट्रा लेने वाले एड्‌स रोगियों के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि इससे एंटी हाइपरलिपिडेमिक प्रभाव कम होता है. घरेलू स्तर पर मशरूम की खेती के अलावा संस्थान द्वारा तैयार की गई व्यवसायिक मशरूम उत्पादन तकनीक के ज़रिए ओएस्टर, बटन, मिल्की, पैडी स्ट्रा, शिटेक और रेशी आदि किस्मों के मशरूम का उत्पादन किया जा सकता है. दैनिक उपभोग के लिए पैदा की जाने वाली इन क़िस्मों के अलावा महिलाओं के सामने मशरूम का बीज तैयार करने का वैकल्पिक व्यवसाय भी है, क्योंकि बीज की कमी के कारण मशरूम का उत्पादन नहीं बढ़ पाता है और इसकी क़ीमत भी अधिक रहती है. मशरूम का बीज तैयार करने की तकनीक आसान है. महिलाओं को इसके लिए बहुत अधिक निवेश भी करने की जरूरत नहीं होती. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार पैदा करने के अच्छे अवसर हैं, क्योंकि वहां मशरूम के बीजों की कमी रहती है.

भारतीय बाग़वानी अनुसंधान संस्थान बंगलुरु उत्पादकों के लिए नियमित रूप से मशरूम की खेती और इसके बीज तैयार करने के प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित करता है. मशरूम से बनने वाले नाना प्रकार के व्यंजन तैयार करना भी महिलाओं के लिए एक अनुकूल व्यवसाय है. आज के समय में जबकि कामकाजी महिलाओं के लिए घर में तरह-तरह के व्यंजन तैयार करना संभव नहीं है, पोषक तत्वों से भरपूर मशरूम के व्यंजन बनाकर उनकी आपूर्ति करना एक अच्छा व्यवसाय हो सकता है. मशरूम पाउडर, मशरूम पापड़ और मशरूम का अचार तैयार करने का काम कुटीर उद्योग स्तर पर किया जा सकता है. मशरूम सैंडविच, मशरूम चावल, मशरूम सूप और मशरूम करी आदि व्यंजन पहले से ही का़फी लोकप्रिय हैं. संस्थान ने नारंगी रंग का खूबसूरत मशरूम पैदा करने की तकनीक विकसित की है, जो गमले रखने वालों और पुष्प प्रेमियों के लिए एक आकर्षण है. मशरूम को प्रोत्साहित करने का एक लाभ यह भी है कि पैदावार के बाद इसकी बची-खुची सामग्री जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने और जैविक खाद तैयार करने में सहायक सिद्ध होती है.

1 टिप्पणी: