मशरूम की खेती से छत्तीसगढ़ के किसानों की जिंदगी बदल रही है। राज्य के बागवानी विभाग ने किसानों को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग दी है और इस वजह से कई किसानों ने इस ओर कदम रखा है।
रायपुर के पास स्थित जोरा गांव के किसान माधव वर्मा को अब पता चल गया है कि मशरूम कितना 'स्वादिष्ट' होता है। इस किसान ने छोटे से इलाके में मशरूम की खेती कर इस साल मोटा मुनाफा कमाया है। वैसे वर्मा अकेले ऐसे किसान नहीं हैं।
राज्य के बागवानी विभाग ने नैशनल हॉर्टिकल्चर मिशन के तहत सात जिलों के करीब सात हजार किसानों को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग दी है। मिशन के तहत मशरूम की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान इसकी खेती का रुख कर सकें।
कवर्धा कृषि महाविद्यालय के डीन और राज्य के वरिष्ठ मशरूम वैज्ञानिक डॉ. एम. पी. ठाकुर ने कहा कि शुरुआती दौर में इसके काफी अच्छे नतीजे सामने आए हैं और किसानों ने मशरूम की खेती में काफी दिलचस्पी ली है। उन्होंने कहा कि इस साल मशरूम का उत्पादन काफी हद तक बढ़ने की उम्मीद है।
सूत्रों ने कहा कि पिछले साल कुल सात हजार टन मशरूम का उत्पादन हुआ था, लेकिन इस साल इसके दस हजार टन तक पहुंचने की उम्मीद है। ठाकुर ने कहा कि आने वाले वर्षों में छत्तीसगढ़ में भी मशरूम की खेती होगी। गौरतलब है कि यहां धान की अच्छी पैदावार होती है।
राज्य सरकार ने मशरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए न सिर्फ अभियान चलाया बल्कि इसके लिए किसानों को ट्रेनिंग भी दी। जोरा गांव के किसान माधव वर्मा ने कहा कि जब अधिकारियों ने मुझे मशरूम की खेती के फायदे बताए तो मैंने इस साल पहली बार इसकी खेती शुरू की।
उन्होंने कहा कि न्यूनतम निवेश और कम समय में मैंने काफी मुनाफा कमाया। वर्मा 200 वर्गफीट क्षेत्र में मशरूम की खेती करते हैं और इससे उन्हें एक-डेढ़ लाख रुपये की आय हुई। अधिकारियों ने बताया कि राज्य में मशरूम की विभिन्न किस्मों की कीमतें 80 रुपये से 100 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर है।
राज्य में रायपुर, कोरबा, बस्तर, सरगुजा, बिलासपुर, दुर्ग और कवर्धा जिलों की पहचान मशरूम की खेती के लिए की गई है। हर जिले से करीब एक हजार किसानों का चयन कर उन्हें रायपुर विश्वविद्यालय में ट्रेनिंग दी गई है। अधिकारियों ने बताया कि इस साल कुल सात हजार किसानों को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग दी जा चुकी है।
रायपुर के पास स्थित जोरा गांव के किसान माधव वर्मा को अब पता चल गया है कि मशरूम कितना 'स्वादिष्ट' होता है। इस किसान ने छोटे से इलाके में मशरूम की खेती कर इस साल मोटा मुनाफा कमाया है। वैसे वर्मा अकेले ऐसे किसान नहीं हैं।
राज्य के बागवानी विभाग ने नैशनल हॉर्टिकल्चर मिशन के तहत सात जिलों के करीब सात हजार किसानों को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग दी है। मिशन के तहत मशरूम की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान इसकी खेती का रुख कर सकें।
कवर्धा कृषि महाविद्यालय के डीन और राज्य के वरिष्ठ मशरूम वैज्ञानिक डॉ. एम. पी. ठाकुर ने कहा कि शुरुआती दौर में इसके काफी अच्छे नतीजे सामने आए हैं और किसानों ने मशरूम की खेती में काफी दिलचस्पी ली है। उन्होंने कहा कि इस साल मशरूम का उत्पादन काफी हद तक बढ़ने की उम्मीद है।
सूत्रों ने कहा कि पिछले साल कुल सात हजार टन मशरूम का उत्पादन हुआ था, लेकिन इस साल इसके दस हजार टन तक पहुंचने की उम्मीद है। ठाकुर ने कहा कि आने वाले वर्षों में छत्तीसगढ़ में भी मशरूम की खेती होगी। गौरतलब है कि यहां धान की अच्छी पैदावार होती है।
राज्य सरकार ने मशरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए न सिर्फ अभियान चलाया बल्कि इसके लिए किसानों को ट्रेनिंग भी दी। जोरा गांव के किसान माधव वर्मा ने कहा कि जब अधिकारियों ने मुझे मशरूम की खेती के फायदे बताए तो मैंने इस साल पहली बार इसकी खेती शुरू की।
उन्होंने कहा कि न्यूनतम निवेश और कम समय में मैंने काफी मुनाफा कमाया। वर्मा 200 वर्गफीट क्षेत्र में मशरूम की खेती करते हैं और इससे उन्हें एक-डेढ़ लाख रुपये की आय हुई। अधिकारियों ने बताया कि राज्य में मशरूम की विभिन्न किस्मों की कीमतें 80 रुपये से 100 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर है।
राज्य में रायपुर, कोरबा, बस्तर, सरगुजा, बिलासपुर, दुर्ग और कवर्धा जिलों की पहचान मशरूम की खेती के लिए की गई है। हर जिले से करीब एक हजार किसानों का चयन कर उन्हें रायपुर विश्वविद्यालय में ट्रेनिंग दी गई है। अधिकारियों ने बताया कि इस साल कुल सात हजार किसानों को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग दी जा चुकी है।
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